दल बदल विरोधी कानून

         सियासी परिवर्तन

चर्चा में क्यों इस कानून की महत्वता तब बढ़ जाती है जब किसी भी चुनाव में कोई भी दल अकेले स्वयमेव बहुमत के आंकड़े को पाने में नाकाम हो जाता है और मजबूरन गठजोड़ की सरकार हर संभव तरीके से बनाने को विवश हो जाता है तथा कानून की चर्चा तब भी बढ़ जाती है जब चलती हुई गठजोड़ की सरकारों में अपने सहयोगी दलों का आपसी मेलजोल बिखर रहा हो या आपसी मत भिन्नता सार्वजनिक हो रही हो फिर  चाहे वह केंद्रीय सत्ता की हो या राज्य विधान मंडलों की वर्तमान स्थिति में केंद्रीय सत्ता अपने स्थायित्व के चरम पर है किंतु कुछ राज्य विधानमंडल जैसे कर्नाटक व मध्य प्रदेश गठजोड़ के डगमगाते चरम बिखराव पर हैं     


क्या है दल बदल विरोधी कानून
52 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1985 द्वारा सांसदों तथा विधायकों द्वारा एक राजनीतिक दल से दूसरे राजनीतिक दल में दल परिवर्तन के आधार पर निरर्हता अर्थात अयोग्यता का प्रावधान इस नियम के अंतर्गत किया गया है इस हेतु संविधान के 4 अनुच्छेदों में परिवर्तन किया गया है तथा संविधान में एक नई अनुसूची दसवीं अनुसूची जोड़ी गई है इस अधिनियम को सामान्यता दल बदल कानून कहा जाता है
बाद में 91 वे संविधान संशोधन अधिनियम 2003 द्वारा दसवीं अनुसूची के उपबंध में परिवर्तन किया गया जो इसे वास्तविक स्वरूप प्रदान करता है

अधिनियम के उपबंध(अयोग्य घोषित किए जाने के आधार)
किसी सदन का सदस्य जो किसी राजनीतिक दल का सदस्य है उस सदन की सदस्यता से निष्कासित माना जाएगा१ यदि वह स्वेच्छा से अपने राजनीतिक दल की सदस्यता को छोड़ देता है (उस स्थिति में अयोग्य नहीं होगा जब उसका दल उसे दल से  से निष्कासित कर दें)२ यदि वह किसी अन्य राजनीतिक दल की सदस्यता को ग्रहण करता है तो३ यदि वह उस सदन में अपने राजनीतिक दल के निर्देशों का पालन नहीं करता अर्थात व्हिप के निर्देशों के विपरीत मत देता है या मतदान में अनुपस्थित रहता है तो वह सदन की सदस्यता से निष्कासित  कर  दिया जाएगा (यदि उसका राजनीतिक दल 15 दिनों के भीतर उसे क्षमा नहीं करता है तो)४ कोई निर्दलीय सदस्य सदन की सदस्यता के निरयोग्य माना जाएगा यदि वह चुनाव के पश्चात किसी राजनीतिक दल की सदस्यता को ग्रहण करता है५ कोई भी नामित सदस्य सदन की सदस्यता के अयोग्य माना जाएगा यदि वह अपना स्थान ग्रहण करने के 6 माह बाद किसी राजनीतिक दल की सदस्यता को ग्रहण कर लेता है

अपवाद-दल परिवर्तन के आधार पर उपरोक्त अयोग्यता निम्न दो मामलों में लागू नहीं होती१ यदि कोई सदस्य दल में टूट के कारण अपने दल से बाहर हो गया हो दल में टूट तब मानी जाती है जब एक तिहाई सदस्य सदन में नए दल का गठन कर लेते हैं२ यदि सदस्य सदन का अध्यक्ष  या उपाध्यक्ष  पीठासीन अधिकारी चुने जाने पर स्वेच्छा से निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए अपने दल की सदस्यता का परित्याग करता है तो वह अयोग्य नहीं माना जाएगा


91 वां संविधान संशोधन अधिनियम (2003)
91 वे संविधान संशोधन अधिनियम 2003 की आवश्यकता महसूस हुई जब दसवीं अनुसूची में दल बदल के विरुद्ध कानून का कोई वास्तविक औचित्य ना रहा इस कानून के प्रावधानों से दल बदल को रोकना प्रभावी सिद्ध ना हो सका दसवीं अनुसूची भी इस आधार आधार पर आलोचना का शिकार हुई कि यह बड़े पैमाने पर दलबदल को प्रोत्साहित करती है जबकि व्यक्तिगत दलबदल का निषेध करती है अयोग्यता से संबंधित 10 वीं अनुसूची के प्रावधानों की कड़ी आलोचना इसलिए भी हुई क्योंकि यह प्रावधान सरकार को अस्थिर बनाने में बल प्रदान करते थे

 91 वे संविधान संशोधन 2003 के प्रावधान
प्रधानमंत्री सहित संपूर्ण मंत्री परिषद का आकार लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 15% से अधिक नहीं होगा (अनुच्छेद 75 ताकि मंत्री पद का लालच देकर आवश्यकता से अधिक मंत्री ना बनाए जा सके  तथा दल बदल को हवा ना दी जा सके)
२ संसद या राज्य विधान मंडल का कोई भी सदस्य जो दल बदल कानून के अंतर्गत अयोग्य ठहराया गया उससे मंत्री पद नहीं दिया जा सकता (जब तक की उसकी पहले वाली सदस्यता का कार्यकाल पूर्ण ना हो अथवा वह संसद या राज्य विधान मंडल के चुनावों में नवनिर्वाचित नहीं हो जाता उपचुनाव में भी जो पहले हो)
३ मुख्यमंत्री सहित संपूर्ण मंत्रीमंडल का आकार राज्य विधान मंडल की कुल सदस्य संख्या के 15% से अधिक नहीं होगा लेकिन मुख्यमंत्री सहित संपूर्ण मंत्रिमंडल की कुल संख्या 12 से कम नहीं होना चाहिए अनुच्छेद 164
४ संसद या राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन का किसी भी राजनीतिक दल का ऐसा सदस्य जो दल परिवर्तन की आधार पर अयोग्य ठहराया गया हो वह किसी भी लाभ के राजनीतिक पद धारण की योग्यता नहीं रखेगा
५ इस संशोधन के द्वारा दसवीं अनुसूची का जो प्रावधान विधायक दल के एक तिहाई सदस्यों द्वारा दल तोड़ने के कारण अयोग्य से छूट पाता था इस संशोधन में उसे एक तिहाई से बदल कर दो तिहाई कर दिया गया अर्थात अब यदि किसी दल के दो तिहाई सदस्य दल से अलग होते हैं यह सदन में नए दल का गठन करते हैं तो उनकी सदन की सदस्यता रद्द नहीं होगी

पक्ष में तर्क
# सरकार में स्थिरता तथा दलों में समन्वय स्थापित करने में सहायक
# व्यवधान रहित शासन स्थापित करने में  सहायक
# जनादेश का सम्मान करने में व लोकतंत्र की गरिमा स्थापित करने में अहम योगदान है
# राजनीतिक पद या लाभ के लालच में दल परिवर्तन को सुगमता से जटिल व विचाराधीन बनाने में सक्षम

विपक्ष में तर्क
@ वह पहलू जो पार्टी की विचारधारा से अलग किंतु समाज के लिए उत्थान का विषय उसे नहीं सुना जाता
@ इस कानून से जनता के शासन को नहीं अपितु पार्टी राज को बढ़ावा मिलता
@ इंग्लैंड ऑस्ट्रेलिया अमेरिका आदि  लोकतांत्रिक देशों में सदस्य पार्टी के विपरीत अपने मत को रखने में सफल होते हैं पार्टी या दल में बने रहकर

आगे की राह
+ स्पीकर या अध्यक्ष के निर्णय की समीक्षा जो न्यायपालिका कर चुकी है  उसे बरकरार रहना चाहिए
+ इस संबंध में चुनाव आयोग को प्रभावी कदम उठाना चाहिए
+ राजनीतिक दलों को व्हिप तभी जारी करनी चाहिए जब सरकार खतरे में सामान्यतः नहीं
+ स्वेच्छा से दल परिवर्तन के प्रावधान को और अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता है

  श्रीमान जी आपसे अनुरोध है कि इस विषय पर आत्मचिंतन  कर अपने विचारों को हमारे साथ सांझा करें

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